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काश! लोग कहें, विजेंद्र जैसा बेटा हो

Guest Writer - inext
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जब बीजिंग ओलम्पिक में मैडल जीतकर अपने देश लौटा तो कई लोगों ने पूछा – कैसा लग रहा था जब मेडल के साथ तिरंगे के नीचे देशभक्ति की धुन बज रही थी और पूरा विश्व आपको निहार रहा था. जहाँ तक मुझे याद है मैं पूरी तरह खो गया था. उन पलों में मैं पूरी तरह अपनी जिंदगी के फ्लैशबैक में चला गया. एक लोअर मिडिल क्लास और उनकी जरूरतों के बीच किस तरह बचपन से लेकर मेच्योर होने का सफ़र मुश्किलों, मुफलिसी के बीच पूरा होता है, इसे जानकर,सोचकर हैरान था.



आप कह सकते हैं कि हाल के दिनों में जो मिला वह सपनों सरीखा सा है. लेकिन आप यकीं करें इसे पाने के लिए जिंदगी के किन-किन पंचों को सहना पड़ा है. ख्वाहिशों को शक्ल देना आसान नहीं है. कई बार इसमें कामयाबी मिलती है और कई बार नहीं. लेकिन इससे जीत की चाहत कम नहीं होती, बल्कि बढ़ती ही जाती है. कामयाबी मेरे लिए ही नहीं सबके लिए बहुत मायने रखती है. मैंने बहुत स्ट्रगल किया है. दिन रात की मेहनत के बाद ही ये सब पाया है. एक आम परिवार से था तो हर छोटी से छोटी जरूरतों के लिए बहुत जतन किए हैं. मेरे पिता ने बाक्सिंग  की कोचिंग कराने के लिए ओवरटाइम किया. माँ बचपन से ही कुछ बड़ा करने की नसीहत देती थी. तब से मेरे अन्दर ख्वाहिशें हिलोरें मारने लगीं कि अपने माता-पिता और देश के लिए कुछ करना है. मेरी सोच ही मुझे यहाँ तक लाई है.


बीजिंग ओलम्पिक  में जीत से कई बदलाव हुए, लेकिन मैं पहले वाला ही विजेंद्र हूँ. मैं लकी हूँ, क्योंकि मेरे साथ कई और लोग थे, जिन्होंने अच्छा परफॉर्म  किया. लेकिन सबका दिन होता है. मुझे  गर्व होता है कि मैंने बाक्सिंग में देश का पहला मैडल जीता. मगर खुद को इसका क्रेडिट नहीं देना चाहूँगा. इस जीत के पीछे मेरी फैमिली, मेरे दोस्त और अन्य बाक्सर्स हैं जिन्होंने मेरा साथ दिया. बीजिंग में मैडल जीतने और वर्ल्ड बाक्सिंग चैम्पियनशिप के बाद एशियन गेम्स में भी कामयाबी हासिल की. वर्ल्ड का कोई टूर्नामेंट अब नहीं बचा है, जिसमें मैडल नहीं लिया. भले ही ब्रांज मिला या फिर सिल्वर, पर जीत की फीलिंग जनता हूँ. अगर आप अच्छा परफॉर्म करेंगे तो सभी इस सक्सेस से खुश होंगे और सेलिब्रेट करेंगे. क्रिकेट पापुलर है और यह सब जानते हैं. वैसे ही बाक्सिंग को लोग सीरियसली देखने लगे हैं. दूसरे देशों में बाक्सिंग बहुत पापुलर है और इन दिनों इंडिया में भी बाक्सिंग के लिए क्रेज़ बढ़ा है. लोगों में इस खेल को लेकर भूख बढ़ी है. कुछ कर दिखाने के जज्बे के साथ परफॉर्म करेंगे, तो सभी रिस्पेक्ट करेंगे.


इंटरनेशनली   सक्सेस पाने के बाद पार्ट टाइम में माडलिंग भी की. ग्लैमर वर्ल्ड मजेदार है. डेली के काम में एक चेंज की तरह है. टीवी पर खुद को देखना अच्छा लगता है. मुझे टीवी  और फिल्मों के बहुत से ऑफर मिलते हैं, लेकिन मैं सब नहीं कर सकता. क्योंकि टीवी और फिल्मों से पहले मेरे लिए बाक्सिंग है. इस वक्त रियलिटी शो ‘ द कटेंडर’ कर रहा हूँ. इस शो को करने की वजह सिर्फ बाक्सिंग है.
मेरी ख्वाहिश है कि इसके जरिए स्पोर्ट्स को आम लोगों में प्रमोट करने में मैं कामयाब होऊं और लोग कहें कि मुझे अपने बेटे को विजेंद्र बनाना है.

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